Wednesday, August 6, 2008

शनि चालीसा






भगवान् शनि देव का दर्शन-
इन्द्रनीलमणि के सामान, सर पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला,
ज्येष्ठा अमावस्या के दिन शनि जयंती उत्सव बहुत ही श्रद्धा से बनाया जाता है
शरीर पर नीले रंग के वस्त्र शोभायमान,
हाथो में धनुष, बाण, त्रिशूल व् वरमुद्रा,
वाहन गीध, पश्चिम दिशा अधिपति
भगवान् सूर्य देव के जयेष्ट पुत्र
छाया पुत्र {संवरणा}
चित्र रथ की कन्या से विवाह हुआ
लोह धातु सन परम स्नेहा
तिल तेल पर स्नेह विशेषा
वायु तत्व कारक शनि देवा
असित आर्कि छायात्मज मंद रविज पंगु सोरि शनि नामा, भक्तन कर करहि पूरण  कामा

सच्चे मन से ध्यान करने पर जीव के दुःख हर लेते है श्री भगवान्
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आकाल मृत्यु हरणम मृत्यु निवारणं
मृत्युंजय महाकालं नमस्यामि  शनैश्चरम्

दातार सर्वभव्यानामं भक्तानामं भयंकरम
मृत्युंजय महाकालं नमस्यामि  शनैश्चरम्

काल रूपेण संसारम  भक्षयन्तं महाग्रहम
मृत्युंजय महाकालं नमस्यामि  शनैश्चरम्

कारणं सुख दुखाना भावा भाव स्वरूपिणम
मृत्युंजय महाकालं नमस्यामि  शनैश्चरम्

सर्वेषामेव भूतानां सुखदं शान्तं व्ययम्
मृत्युंजय महाकालं नमस्यामि  शनैश्चरम् 

         कृष्णवर्णहयश्वेव कृष्णगोक्षीऱसुप्रिये

       कृष्णगोधृतसुप्रीत कृष्णगोदधिषुप्रिय

       कृष्णगोदानसुप्रिये कृष्णगोदत्तहृदय

       कृष्णगोग्रासचितस्य सर्वपीड़ानिवार्कम


 

 अघोररूपों दीर्धकाय  परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः

अद्रितिये अपराजितो परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः

अतितेजो अनन्तो परम सोभ्यम शनैश्चराय नमः

आनंदमय आनंदकर परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः

आत्मरक्षक  परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः

आत्मरूप परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः

एश्वर्यफलदा परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः

 मंदार कुसुम प्रिये शनैश्चराय नमः

मल्लिका कुसुम प्रिये शनैश्चराय नमः

शमी पत्र प्रिये शनैश्चराय नमः

विप्र प्रिये शनैश्चराय नमः

विप्र रूप शनैश्चराय नमः

नामपरायन प्रीतो शनैश्चराय नमः

संत हितकारी शनैश्चराय नमः

विप्रदान बहु प्रिये शनैश्चराय नमः

शरणागत वत्सल शनैश्चराय नमः

शिवमंत्रजप प्रिये शनैश्चराय नमः



शतभिषा शनि वासरे आनंद योगकारकं


अनुराधा शनि वासरे अमृत योगकारकं


पुनर्वसु  शनि वासरे छत्र  योगकारकं


स्वाति  शनि वासरे सिद्धि  योगकारकं


विशाखा शनि वासरे शुभ  योगकारकं


श्रवण शनि वासरे सुस्थिर योगकारकं


अश्लेशा शनि वासरे मानस योगकारकं

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ॐ नमस्ते कोण पिङ्गलाय नमोस्तुते-


नमस्ते विष्णु रूपाय कृष्णाय च नमोस्तुते


नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते काल्काएजे  


नमस्ते यंमसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते


नमस्ते  कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य नमामि च


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ॐ कालत्रय महाकाल मृत्युंजय  नमो अस्तुते

ॐ सृस्ती रुपें देवेश  मृत्युंजय  नमो अस्तुते

ॐ कारण सर्वतीर्थाना  मृत्युंजय  नमो अस्तुते

ॐ भावभाव परिच्छिन्न मृत्युंजय  नमो अस्तुते

ॐ सांख्य  योगेस्य हंसस्ये मृत्युंजय  नमो अस्तुते

ॐज्ञानिना ज्ञान रूपोऽसि मृत्युंजय  नमो अस्तुते

ॐ सर्वमाया कलातीते सर्विन्द्रेये मृत्युंजय  नमो अस्तुते

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   विशाम्पति शनैश्चराय नमः

सर्व वासी शनैश्चराय नमः

अर्थकर शनैश्चराय नमः

सर्वकामद शनैश्चराय नमः

सर्वकालप्रसादःशनैश्चराय नमः

निमित्तं शनैश्चराय नमः

सर्वदा शनैश्चराय नमः

सर्वगंधसुखावहःशनैश्चराय नमः

तरन तारण शनैश्चराय नमः

गुणाधिक शनैश्चराय नमः

आषाढ़ शनैश्चराय नमः

तीर्थदेव शनैश्चराय नमः

वरदः शनैश्चराय नमः

तपोमय शनैश्चराय नमः

शोभन शनैश्चराय नमः

कामधेनु शनैश्चराय नमः

कृष्न्केतु शनैश्चराय नमः

कृषकृष्णदेह शनैश्चराय नमः

कृष्नाम्बर प्रिय शनैश्चराय नमः

सर्व साधन शनैश्चराय नमः

सर्व पावन शनैश्चराय नमः

सर्वपापहरो शनैश्चराय नमः

कपिला क्षीर पनास्य शनैश्चराय नमः

सर्वयोगी महाबल शनैश्चराय नमः

असाध्यरोगहर शनैश्चराय नमः

तपस्वी तारको धीमान शनैश्चराय नमः

भक्ति गंभ्यम  परमब्रह्म शनैश्चराय नमः








 

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 पराक्रम भाव कारकं

शश योग कारकं

शत्रु रोग आदिव्यधि हर भाव कारकं 

लाभ भाव कारकं

राज योग कारकं

भ्रमण योग कारकं

शुभ योग कारकं

सुरपति योग कारकं

देव योग कारकं

कैलाश योग कारकं

महाराजाधिराज योग कारकं

कैलाश योग कारकं

धर्म योग कारकं

दिव्य योग कारकं

मुनि योग कारकं

अमितआयु योग कारकं

श्री नाथ योग कारकं

मोक्ष योग कारकं


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आयु  प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः

सुख शांति  प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः

यश कीर्ति प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः

ज्ञान मान प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः

सर्व सिद्धि प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः

अभिष्ट फल प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः

अक्षय फल प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः




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शनि प्रदोष भक्ति  पद दाई


 रिक्ता तिथि शनि वासरे सिद्धि




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 श्री श्री अत्री ऋषिये नमो नम


श्री श्री भरद्वाज ऋषिये नमो नम

श्री श्री गौतम ऋषिये नमो नम

श्री श्री कश्यप ऋषिये नमो नम

श्री श्री वशिष्ट ऋषिये नमो नम

श्री श्री विस्वमित्र ऋषिये नमो नम

श्री जमदग्नि ऋषिये नमो नम

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स्वग्रही शनि परम सुखदाई

मित्रग्रह शनि पुण्य फलदाई

मूलत्रिकोन चतुर प्रभुताई

तुला राशी शनि वासरे परम पद दाई

सखा संग सहज सुखदाई

शुक्र युक्त शनि शुभ दृष्टीमय परम सुख दाई

बुधयुक्ति बहुविधि  सुखकारी

त्रितिये शनि पराक्रम करी

छट भाव शनि रोग दोष हारी

लाभ भाव  शनि धनप्रद शुभचारी

वृष राशी शुभ व् धन कारकं

मिथुन राशी धन कारकं

मकर राशी शुभ कारकं

कुम्भ राशी शुभ कारकं

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कृतिका शनि धान्य सुखदाई

आद्र शनि भगति सुख करी

पूर्व भद्र शनि मेघ फल दाई

चित्रा शनि बहु लाभमय

मूल शनि वासरे शुभ प्रद

धानिस्ट शनि मेघप्रद

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शनि काल

 भगवान का द्वार है शनि काल

आत्म कल्याण का मार्ग है शनि काल

निज दर्शन का साधन है शनि काल

प्रभु मिलन का योग है शनि काल

भव पाश से मुक्ति का साधन है

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शनि  मात्र एक गृह नहीं अपितु सनातन सत्य है

शनि स्वयं में सत्य की एक परिपूर्ण व्याख्या है

शनि जीव व् प्रकृति का परिपूर्ण सत्य है

शनि एक अद्रितीय सत्य है

शनि सत्य प्राप्ति का एक साधन व्  स्वयं में परिपूर्ण सत्य  है

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 शनि काल व् अमृत धारा

शनि काल में अमृत धारा का प्रवाह निरंतर होता है और ज्ञानी इस प्रवाह का परिपूर्ण  लाभ प्राप्त करते है  


अमृत वह तत्व है जो आत्मा को तृप्त करता है

यह आत्मा की तृप्ति हेतु परम साधन है


कलि काल में शनि काल में यह परम सहज स्वर्रोप में प्राप्त होता है जो आत्मा के परमात्मा से मिलन में परम सहायक सिध्द होता है


अमृत  स्त्रोत

ज्ञान वह अमृत है जो जीव को ब्रह्म तुल्य कर देता है शनि काल अध्यातम व् आत्म ज्ञान का भण्डार है


भक्ति वह अमृत है जो ह्रदय कोपावन कर देती है और शनि काल में यह अनंत गति से बहती है


सत्य जो कर्म के समर्पण हेतु परम सहायक है शनि काल में जीव के समीप वास करता है 


भगवत प्रेम अमृत से भी अधिक है जो शनि काल में सहज रूप से प्रगट होता है


संत वचन किसी अमृत से कही अधिक प्रभावी होते है और शनि काल में यह जीव तक सहज भाव से पहुच जाते है


संत दर्शन स्वयं में एक अनूप अमृत है जो शनि काल में सहज रूप में प्राप्त होता है


वनस्पति जगत में तुलसी से बढकर कोई अमृत नहीं और शनि काल में इसकी भक्ति सेवा सहज स्वरुप में उपलब्ध  होती है


धारा पर तीर्थाटन भी अमृत तुल्य है-शनि काल में तीर्थाटन के अवसर सहज रूप से प्राप्त होते है


गंगा जल साक्षात् अमृत है जो जीव को शनि काल में सहज स्वरुप  में प्राप्त होता है


भगवन सामीप्य

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सभी जीवो पर शनि की बराबर  दया

अंडज पिंडज स्वेदज व् जरायुज चार प्रकार से जीव देह धारण करता है


अंडज -जो अंडे से प्रगट होते है अंडे से उत्पन्न जीवो के कान का उभार नहीं होता born of eggs

पिंडज-जो गर्भ से प्रगट होते है Born of embryo with an outer membrane

स्वेदज-जो परिस्तिथि से अतार्थ पसीने व् अन्य नमी व् दूषित संज्ञा born of warm vapor or sweet

जरायुज-जो  वनस्पति के रूप  में प्रगट होते है

 Spouting from beneath the ground-plants and trees or so

सभी जीवो पर शनि की बराबर  दया रहती है पर मनुष्य पर विशेष

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शनि एक सत्य


शनि  मात्र एक गृह नहीं अपितु सनातन सत्य है

शनि स्वयं में सत्य की एक परिपूर्ण व्याख्या है

शनि जीव व् प्रकृति का परिपूर्ण सत्य है

शनि एक अद्रितीय सत्य है

शनि सत्य प्राप्ति का एक साधन व्  स्वयं में परिपूर्ण सत्य  है

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शनि काल में आचरण

दीन दुखियो के प्रति सद्भाव

धर्म के प्रति निष्ठां

सत्य का मान

गुरु माता पिता का मान

यथोचित दान

मन में सेवा भाव

कुटिलता का सर्वदा त्याग

प्रकृति का सामीप्य

भागवत प्रेम

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ज्योतिष ज्ञान प्रदायकम शनैश्चराय नमः

ज्ञान निधि शनैश्चराय नमः

परम नित्य शनैश्चराय नमः

परम प्रकाशात्मा शनैश्चराय नमः




शांत रूपी शान्तस्य शनैश्चराय नमः

मकर्कुम्भाधिपति शनैश्चराय नमः

प्राण रुपी प्राण धारी शनैश्चराय नमः

सर्वहितकारी पुराण पुरुषोतम शनैश्चराय नमः

परम पावन परम हंसस्वरूप शनैश्चराय नमः

महावीरो महाशान्तो महासुतो शनैश्चराय नमः

कर्म प्रिये सत्य प्रिये न्याय प्रिये शनैश्चराय नमः






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मंदार कुसुम प्रिये शनैश्चराय नमः

मल्लिका कुसुम प्रिये शनैश्चराय नमः

शमी पत्र प्रिये शनैश्चराय नमः

विप्र प्रिये शनैश्चराय नमः

विप्र रूप शनैश्चराय नमः

नामपरायन प्रीतो शनैश्चराय नमः

संत हितकारी शनैश्चराय नमः

विप्रदान बहु प्रिये शनैश्चराय नमः

शरणागत वत्सल शनैश्चराय नमः

शिवमंत्रजप प्रिये शनैश्चराय नमः

शनि काल

पभु का द्वार है शनि काल

आत्म कल्याण का मार्ग है शनि काल

निज दर्शन का साधन है शनि काल

प्रभु मिलन का योग है शनि काल

भव पाश से मुक्ति का साधन है

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सत्य चित आनंद मार्ग -की खान है शनि काल

सत्य -जिसकी परिपूर्ण सत्ता है

चित- जो चेतना का कारण भूत

आंनद- आत्मिक सुख

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शनि काल व् समाधी

शनि काल जीवन यात्रा का अहम् पड़ाव होता है

इस पड़ाव में भक्ति, ज्ञान, योग, ध्यान, समाधि सभी जीव को निज स्वर्रोप हेतु प्रेरित करते है

भक्ति से ज्ञान की संज्ञा है

ज्ञान से योग की

योग से ध्यान की

व् ध्यान से समाधि

 समाधि में जीव निज स्वरुप  का दर्शन करता है

निज दर्शन से जीव को भगवत प्राप्ति होती है

भगवत प्राप्ति से ही मोक्ष का साधन होता है

इन सभी क्रियाओं हेतु शनि काल परम सहायक है

भगवत प्रेम ही मोक्ष का परम साधन है


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शनि सुख साधन  सन्देश 


सही सोच से क्रोध को घटाना

यथोचित दान से लोभ घटाना

ज्ञान से मोह घटाना

भागवत प्रेम से काम घटाना

विनम्रता धारण कर गर्व घटाना

नाम जाप से पाप घटाना

सत्कर्म से निज स्वरुप  पाना

त्याग से तेज बढाना

योग से आयु बढाना

नित चिंतन से ज्ञान बढाना


परमार्थ से मान बढाना


दया से धर्म


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Teachings of the period of lord Saturn in transit


Live a moral life


Live a truthful life


Live a realized life


Live a trusted life


Live a meaningful life


Never hurt anyone even in thoughts


Never indulge in activities against nature


Never cheat the saintly soul & pious one


Never seek ill of anyone



Never lies to anyone















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Saturn helps in attaining all the three states of worship on the cord of penance_


Worship of gods, Brahmans, teachers, parents and the wise, purity rectitude, celibacy, and harmlessness are said to be penances of the body


Inoffensive, truthful, agreeable, and beneficial speech of scripture and muttering of the name is said to be penances of speech



The tranquility of mind, serenity, the habit of meditation on God, self-control, and purity of heart-these are said to be penances of the mind.  


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O mind, the transit of Lord Saturn is more than blessings on the cord of life to attain the true meaning of being human


 


Keep longing at heart for the secret that is hard to reach at


The grace of the Lord gives the clue to that eternal abode


 


Devotees meet the grace of the lord


And realize the truth


And experience the true self


 


The path of bliss for which in the vein


Even gods and angles pray-


Manifest by the grace of the lord in transit


 


To peep within and behold what lies beyond this dark curtain


The secret of fourteen realms will certainly be disclosed to


In transit of Lord Saturn that keeps faith in


 


The path of the beloved lies within the self


Just keep love and patience



Lord, indeed, will give light to find a true glimpse


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let no one burn in delusion, like the moth at the sight of a lamp


As a fish, in satisfying its plate, is separated from the water and dies being unaware of the net laid underneath it brings torture to the body



The span of lord Saturn warns one of the dangers of delusion to be safe to make a safe passage from the ocean of mundane existence


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No other age can compare with the kali age-provided that man has faith in its virtues; for in this age one can easily cross the ocean of transmigration simply by singing the praise of the lord


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Self hidden in all beings is not revealed to all, sages and saints of keen intelligence alone see it with the help of sharp and acute reason in the tenure of Saturn because that suits the most for the purpose.


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If anyone lacking intelligence, discretion, and knowledge can possibly redeem if cultivating the fellowship of saints and following their direction, pursues a course of discipline recommended by them.


If a man awakes at the last moment can also be redeemed through the highest degree of earnestness.


Immoral, libidinous, sensual, and addicted too can be redeemed very quickly though realization unto self and the supreme with refuge in the lotus feet of the lord.


Who so ever takes refuge in lord Saturn make it purify self for the redemption at its best.


Evil eventually causes its own destruction


Indeed the truth is supreme but still, it needs to be presentable


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One who performs all his duties for the sake of God-depend on him-devoted to and has no undue attachment and is free from malice towards all beings attains God.


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Message of Shani kaal_


for one's spiritual good strenuous efforts should be made to cultivate devotion, spiritual knowledge, and dispassion and practice virtue and should never give up righteousness on any account from concupiscence, greed, fear, or bashfulness even under the most trying circumstances.

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One who performs all his duties for the sake of God-depend on him-devoted to and has no undue attachment and is free from malice towards all beings attains God.

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Lord Saturn teaches us to be frugal and simple in life so that we may lend our helping hand to others who are needier

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Without any ill-feeling towards any living being in thought, word and deed; with knowledge and understanding of gods, Grace is the definition of truthful life to be a favorite of lord Saturn.

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No one can find the ultimate truth through mimicking show those who fill their pots with drops of celestial melodies pave the path by the grace of the lord.

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This human body is a storehouse of celestial centers, all cosmic abodes are within the body; wondrous plays are going on within and one needs to take shelter in truth to save guard self-refuge in the lotus feet of lord Saturn makes one reach a safe shore.

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Those who keep faith in the lord, the lord guides them at every step of life in an invisible mode




Those who serve the mankind and nature in love with Lord, attain the all the four rewards designated for human life




Lord is the giver of health, prosperity, wisdom, and eternal joy in his tenure to the concern that keeps faith in the mercy of the lord




Fear of death can be conquered through concentration unto self through meditation-ultimately this leads to unison with the supreme soul by the grace of Lord Saturn




Life is a light and sound show on the pre-written script with a cushion to write the script for next




Man and God dwell along-overwhelmed by troubles man grieves at his helplessness but when finding god along with delights and his trouble passes away




The darkness of life can be eliminated by the light of true knowledge, lord is the light of lights beyond darkness-to dispel the darkness of ignorance




We cannot move unless he makes us move-firm belief in Lord certainly gives us the courage to fight all odds in life and society to make our lives sublime




There is no light that removes the dark of delusion which pains the life deep till soul but the divine one and Lord Saturn is the giver of divine wealth




Those who wish to take liberation should take refuge in Lord Saturn who is the giver of mode that makes one realize self at its best




Virtues acquired by sacrifices are never lost and move along as tangible help in both the worlds




Lord possesses endless virtues, infinite strength, and compassionate nature




Mind intellect and senses may help one on the subject to reach God but self alone is the one that can make it




The divine law of justice is very simple as one sow, so shall reap




God exist-this acknowledgment is enough for one in life, the rest  is for God to make it


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Karma_


Lord Saturn indicates the law of karma through varying means in his tenure.

Karma is the path of life.

Nobody can remain without doing any work even for a single moment at any time. all peoples are bound to do the work, as per their habit and fate that co-relates to the inner cell and Sat Raj and Tam designated on the cord of fate in a specific orbit.

Without doing work journey of life cannot be carried on even to maintain the body one needs to work and if it is given a true direction that leads to wisdom is the message of the time period of transit of lord Saturn.


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जीवन में रोग या शारीर का नाश अधिक चिंता का विषय नहीं अपितु चिंता का विषय है भागवत प्राप्ति से विमुखता -साधन सुख की चिंता में अमूल्य जीवन को खोना चिंता का विषय है मनुष्य देह पाकर भी सत्य से विमुख रहना चिंता का विषय है मनुष्य जीवन मोक्ष द्वार है इस द्वार पर आकर भी परमात्मा का दर्शन नहीं कर पाना चिंता का विषय है शनि काल में भी सत्य से विमुख रहना स्वयं में कही बड़ी भूल पर चिंता का विषय है शनि काल चेतना हेतु परम साधन है शनि काल में भी चेतना प्राप्त ना होना चिंता का विषय है


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शनि काल एक तीर्थ के सामान होता है और जीव को इसका सत्य समझाना चाहिए -शनि काल की तीर्थ यात्रा जीव को आत्म दर्शन का बोध कराती है इस यात्रा में जीव निज स्वरुप को प्राप्त कर भागवत ज्ञान का दर्शन करता है जो स्वयं में मोक्ष कारक है


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भगवान्  शनि देव समस्त सांसारिक क्लेशो को हरने वाले, सुख संतोशो को प्रदान करने वाले, काम क्रोध को सही दिशा देने वाले, कीर्ति का विस्तार करने वाले परम देव है भक्तो के सब प्रकार से हितेश है भगवान् शनि  देव -भक्त इन्हें जब जब जहा पुकारते है यह अपने योग बल से तुरत ही भक्त की समीप पहुच जाते है भगवान् का सामीप्य पाकर भक्त स्वत ही  पीड़ा  से मुक्त हो जता है


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शनि तत्व


 वात पित  और कफ देह सञ्चालन के प्रमुख तत्व है प्रत्येक तत्व की अहम् भूमिका है तीनो  तत्वों का सही समावेश ही स्वस्थ्य शरीर की महिमा हेतु परम आवश्यक है


वायु तत्व मूल रूप से शनि द्वारा प्रभावित होता है

वायु ही प्राणों का आधार भी है

देह में नियमित  वायु का सञ्चालन ही कर्म व् भोग हेतु  परम सेतु है

वायु के दबाब की सही स्थिति ही योग का आधार  भी है

पञ्च वायु की अपनी महिमा है

पञ्च वायु की स्थिति के दोष प्रद होने पर पञ्च विकार उत्पन्न होते है

पञ्च विकार से देह व् मन के विकार उत्पन्न होते है

शनि शरणागति से पञ्च विकार दूर होते है यह परम सत्य है

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 शनि कृपा पात्र हेतु साधन

दीनन पर दया

सत्यमय जीवन

पीपल सेवा

अपंग सहायता

गुरु पूजा

महादेव पूजन

सत्य  उपासक

तिल तेल दीपक

अन्न दान

कृष्ण वस्त्र दान

कृष्ण गो सेवा

कृष्ण पूजन

पित्मात सेवा

अमावस्या मान

संध्या वंदन

इन्द्रिनिग्रह

संतुष्ट

सबही मानप्रद आप अमानी

दयामय हृदये

भक्तमय

सत्संग

हवन यज्ञ

मंत्र जाप

परमार्थ

संत सेवा

धर्म मान

सनातन सत्य धारक

श्रद्धा धारक

संध्या वंदन

सदाचार

भागवत तत्व प्रचारक

शांति प्रिये

प्रदोष मान कर्ता

भक्त मान प्रकाशक

वृद्ध सहायक

अनाथ सहायक

श्री राम कथा

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शनि काल के कुछ विशेष लाभ

संत दर्शन

संतो का संग

संत कृपा

तीर्थाटन

सत्य का अनुभव

भक्ति पथ लाभ

तत्व बोध

निज स्वरुप परिचय

धर्म की प्राप्ति

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योग माया


शनि काल योग माया से परिपूर्ण होता है यहाँ योग पग पग पर उप्लब्द रहते है जीव की सहातार्थ -योग अनंत है और सभी जीव के दुखो के नाशक है

सांख्य योग-अहंता व् ममता को परिपूर्ण कर सर्व व्यापी परमात्मा से एकीकृत करता है

कर्म योग-फल और आसक्ति को त्याग कर कर्म हेतु प्रेरित करता है

भक्ति योग- साकार ब्रह्म के स्वामित्व को स्वीकार कर श्रधा से उसी में चित को तन्मय करता है

ध्यान योग- शुद्धता से चित को स्वयं में लीन  कर भागवत  प्राप्ति का साधन है

अष्टांग योग-इन्द्रियों का निग्रह कर मन को ह्रदय में आत्मा के समीप  स्थित कर प्राणों को मस्तिष्क से परिपूर्ण  कर पांच वायु से हवन कर स्वयं को भितिरी तेज तत्व के माध्यम से भागवत तत्व में लय करना अष्टांग  योग की संज्ञा को प्राप्त है


हठ योग- राज योग -लय योग की अपनी संज्ञा है और यह सभी शनि काल के साधन है


योग की प्राप्ति में आठ सोपान है जो योग यात्रा  को सुगम बनते है

यम

नियम

आसन

प्राणायाम

प्रत्याहार

धरना

ध्यान

समाधी

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प्राणायाम-प्राणायाम की महिमा अपरंपार यह योगियों का परम साधन है यह प्राणों का व्यायाम है पर सावधानी परम आवश्यक है क्यों की यह प्राणों का विषय है प्राण से ही जीव की संज्ञा है प्राण ही जीवन 


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निंद्रा


निंद्रा जीवन का अहम् अंग है  यह जीव को चेतना  की और ले जाती है

यह  जीवन में नई स्फूर्ति प्रदान करती है

सांसारिक विषयों का चिंतन करते

जो निद्रा प्राप्त होती है वह जीव को भाव सागर के तट पर ले आती है


भागवत चिंतन में जो निद्रा प्राप्त होती है वह जीव की भीतर सत्य का समावेश करती है और जीव को भव पार ले जाने का साधन करती है शनि काल में भव पार लगाने वाली निद्रा सहज ही प्राप्त  होती है

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स्मृति

स्मृति दो प्रकार की होती है क्रियात्मक व् ज्ञानात्मक क्रियात्मक निरंतर नहीं रहती व् ज्ञानात्मक सदेव युग युग तक साथ रहते है जैसे ही जीव जीवन रूपी भूमि  में भक्ति की खाद डालते है यह स्वत ही प्रगट हो जाती है

कर्म


सभी जीव कर्म बंधन से बंधे है कर्म का फल स्वयं में बंधन है वह सुख का हो या दुःख का दोनों ही चित वृति का स्वरुप  है  वृति की उत्पत्ति का अंत तय है पर परमानन्द व् प्रेम अनंत है जो भगवत चरणों में समर्पण से प्राप्त होता है


अहिंसा-सत्य-अस्तेय व् धर्म का पालन सभी प्राणियों के कल्याण का विषय है यह भगवत तत्व  प्राप्ति हेतु परम आवश्यक भी है


सत्य निष्ठ विद्या व् विनय युक्त ब्रह्मण ब्रह्म तुल्य होता है




यह एक भूल है स्वयं को असहाय समझाना, भगवान् शनि देव सभी के सहायक है, असहाय के तो परम सहायक है भगवान्- 


निर्बल के बल भगवान् शनि देव

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पूजा की सात पुष्प


अहिंसा, इन्द्रिय निग्रह, दया, क्षमा, मनोनिग्रह, ध्यान, सत्य


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युग बदलते है सत्य त्रेता द्वापर और कलि काल अपना वाचास्व प्रगट करते है पर जीव स्थिति बंधन  गति को ही साधती है - है परमात्मा अटल सत्य जो परिवेर्तानीय  नहीं है- सत्य ही उसका साधन है और सत्य ही उसकी गति है सत्य को साध कर जीव इस परिवर्तानिये स्थिति से मुक्त हो सकता है यही शनि सन्देश है जीव मुक्ति हेतु




रे  मन, पहले की अवस्था- पहले की परिस्थिति- पहले की संगति- पहले का  समय कहा है  और जो अब है वह भी अब की तरह न रहेगा,  जैसे पहले वाले बदल गए ये भी बदल जायेगे, अकेला आया  है अकेला ही जायेगा सत्य को अपने ले वह सदा-सदा का संगी है साथ निभाएगा अंत काल ही नहीं उसके बाद भी संग जायेगा यही शनि सन्देश है जो अपनाएगा नित नूतन निज स्वरुप  पायेगा आत्म सुख ही नहीं केवलं सार भी पायेगा



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प्रार्थना

भगवान् शनि देव के चरणों में की गई प्रार्थना सहज ही सफल होती है शनिवार को भगवान् सभी की प्राथना स्वीकार  करते है भक्त अभक्त के भेद के बिना ही भगवान् दुखियो के दुःख दूर करते है संध्या वंदन भगवान् स्वयं स्वीकार करते है किन्ही कारणों से यही प्रभु के चरणों में प्राथना फलित  ना हो तो जो जीव निराश नहीं होना चाहिए और पुन प्राथना करनी चाहिए सत रुपी प्राथना हेतु शुक्रवार संध्या  काल व् राजस प्रार्थना हेतु बुधवार प्रात काल सहायक सिद्ध होता है

भगवान् शनि देव किसी को निराश नहीं करते -शनि संध्या  वंदन के बाद भगवान् इच्छित फल प्रदान करते है फल के स्प्रस्ट साकार  होने में कुछ समय लग सकता है जीव को धर्य धरना चाहिए  भगवान् शनि देव अपने गुरु शिव सामान ही  महादानी है नित्य के दानी है

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परमात्मा से साक्षात्कार करने का साधन अंतर मुखी पूजा -अंतर मुखी पूजा के दाता है भगवन शनि देव

सच्चे  संत व् महात्मा के दर्शन से होती है आत्म अनुभूति-संत दरस के कारक है भगवन शनि देव

काया प्रगटे का सूत्र है शब्द-शब्द के सूत्र कार ब्रह्म-ब्रह्म के पथ प्रकाशक भगवन शनि देव

कर्म की सत्ता अटल है कर्म का फल भी अटल है फल के दाता है भगवन शनि देव

काया का संभंध है कर्म से-कर्म का सम्भन्ध है आत्म तत्व से -कर्म गति प्राप्त आत्म तत्व फल निर्णायक है भगवन शनि देव

कर्म से देह - देह से कर्म यही चक्र है यही बंधन है इस बंधन से मुक्ति ही मोक्ष है सहायक है भगवन शनि देव

सत्संग से मन का मैल दूर होता है सत्संग के दाता है भगवन शनि देव

भागवत  प्रेम से प्राप्ति होती है परिपूर्ण सत्य की भागवत प्रेम के दाता है भगवन शनि देव

सुख सागर का तट है सत्य- सत्य के प्रकाशक है  भगवन शनि देव

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जीवन  का सत्य

जीवन स्वयं में पूर्ण नहीं पर यह आत्मा की परिपूर्णता का साधन है

सभी जीव अपनी पूर्णता से भिन्न होने के कारन दुखी  है

जीवन की व्याख्या सहज नहीं पर यह जीव के सुख दुःख हेतु साधन है

जीवन एक यात्रा है जो अपनी परिपूर्णता की खोज हेतु कर्म के आधीन है

जीवन में आयु की सीमा अदृश्य  है यह शनि माया का रूप भी है और शनि कृपा की छाव भी

जीवन में हानि  लाभ सुख दुःख जीवन मृत्यु सब विधाता के अधीन है

जीवन एक धारा है जो जीव आत्मा को अपने प्रवाह में लिए जा रही है

भाग्य शाली है वो आत्मा जो बिना भटके इस  धरा के सहारे सागर को प्राप्त कर लेती है

जीवन में जीव ही जीव का शत्रु है यही जीव की सबसे बड़ी वेदना  है

जीवन की यह यात्रा अनंत तो नहीं पर चलती रहती है जन्म व् पुनार्जमं की राह-जब तक  परिपूर्णता से भिन्न है

जीव की परिपूर्णता सत्य में निहित है-जीवन का परम सत्य कर्म भोग व् मोक्ष  द्वार

संसार के सभी दुखो  में तृष्णा दीर्ध काल तक दुःख देती है

तृष्णा का मूल कारण भी शारीर है और यह शारीर के विविद शूलो की बिन्दु भी है



लघु  कल्याणी अतार्थ शनि की ठईया जीव को निज स्वरुप का बोध कराती है जीव के परम कल्याण की रचना  करती है



रे  मन तू सांसारिक साधनों से अधिक भगवान् शनि का भरोसा कर, उन की दया की कोई सीमा नहीं, उनकी कृपा भक्तो  की साये की तरह रक्षा करती है


मृत्यु एक अटल सत्य है मृत्यु के देवता यम है जो शनि देवता के छोटे भाई है और शनि आज्ञा से जीव की देह परिवर्तन को रूप देते है शनि भक्तो के निमित विशेष आदर रखते है

परिवर्तन प्रक्रति का नियम है जो धरा पर सजग रूप से प्रकाशित है मृत्यु उसी परिवर्तन की एक कड़ी है

देह त्याग का दूसरा नाम मृत्यु है देह धारण व् देह त्याग मूलतः दुःख के कारन है पर योगिओ के लिए यह कठिन नहीं-सत्य धरी जीव भी इस पड़ाव को सहजता से पार कर पते है -भगवान् शनि देव के भक्त भी इस स्थिति से सहजता से पार हो जाते है

जीव जीवन में बहुत सी प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष वेदनाओ से ग्रसित रहता है जब वेदना जेर्नोद्वर को पार  कर जाती है तो यम अपने कर्म को रूप देते है और जीव की वेदना के स्वरुप को बदल देते है यद्दपि वेदना जीअवं का अंग है तब पर भी सहन सीमा की कोई परिधि है

मृत्यु एक अन्धकार  है जहा जाने से सभी डरते है पर जो स्वयं में प्रश्काश का साधन रखते है वह इस भय से मुक्त रहते है भगवान् शनि देव उस अद्रितिये प्रकाश के दाता है

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भगवान्  शनि देव समस्त सांसारिक क्लेशो को हरने वाले, सुख संतोशो को प्रदान करने वाले, काम क्रोध को सही दिशा देने वाले, कीर्ति का विस्तार करने वाले परम देव है भक्तो के सब प्रकार से हितेश है भगवान् शनि  देव -भक्त इन्हें जब जब जहा पुकारते है यह अपने योग बल से तुरत ही भक्त की समीप पहुच जाते है भगवान् का सामीप्य पाकर भक्त स्वत ही  पीड़ा  से मुक्त हो जता है

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संत चरणों में अपना दुःख प्रगट करने से दुःख कम हो जाता है शनि काल में सच्चे संतो का संग सहज सुलभ होता है

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संसार गति के अधीन है संसार में जीवन भी गति के अधीन है यह गति ही जन्म मरण की जननी है जीव सदा ही गति के अधीन कर्म के वशीभूत रहते है  कर्म ही देह धारण का मूल सूत्र है- देह दुःख दुःख का भवर है -सत्य को साधने से ही जीव इस भवर से अपने को बचा सकता है यही शनि सन्देश है


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जो मनुष्य भक्ति को व्यवहारिक सुखो का साधन बना कर इस्तेमाल करते  है वह स्वयं को स्वयं से दूर  करते है




भक्त सदेव निर्मल मन के धनी निर्भय व् परम नित्य गति को प्राप्त होते है शनि कृपा से निज सुख की अनुभूति प्राप्त करते है




भक्त को जीवन में बहुत से परीक्षाओं से गुजर्रना से गुजरना पड़ता है  जो स्वयं में विकराल व् दुःख दाई  होती है पर भक्त दुखो को छुपा कर मुस्कान ही प्रभु के चरणों में समर्पित करते है


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भगवान् शनि देव  की महिमा अपरमपार है

भक्तो को परिपूर्ण वैभव प्रदान करने वाले भगवान् शनि की जय

सर्व व्याधि विनाशकम

सर्व शत्रु विमर्दनम

अविद्या नाशकं

कालसहोदर

अनंत पुन्य फलदाय

दीन हितकारी संत सुखकारी

भगत भयहारी परम शुभ कारी

सत्ययुग में भगवान् का ध्यान त्रेता में यज्ञों द्वारा और द्वापर में उनका पूजन करके मनुष्य जिस फल को पाता है, उसे वह कलियुग में शनि प्रिये  कृष्ण कीर्तन करके प्राप्त कर लेता है।


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सत्य

सत्य की कोई सिमित परिभाषा नहीं

सत्य अनंत है

सत्य की परिपूर्ण सत्ता है

सत्य की गरिमा सत्य में ही निमित है

सत्य असीम है

सत्य स्वयं में एक अद्रितिय प्रकाश है जो ब्रह्म, जीव व् माया का प्रकाशक है

भक्ति का रूप है सत्य 

तप का तेज है सत्य

जीवन का सत्य देह

देह का सत्य समय

समय का सत्य गति

भोतिक सत्य दर्शन द्वारा प्रतिपादित

अध्यात्मिक सत्य अनुभव द्वारा प्रतिपादित

देविक सत्य अनुभूति द्वारा प्रतिपादित

जीव का अंतिम सत्य मृत्यु

आत्मा का अंतिम सत्य परमात्मा

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मृत्यु एक अटल सत्य है मृत्यु के देवता यम है जो शनि देवता के छोटे भाई है और शनि आज्ञा से जीव की देह परिवर्तन को रूप देते है शनि भक्तो के निमित विशेष आदर रखते है

परिवर्तन प्रक्रति का नियम है जो धरा पर सजग रूप से प्रकाशित है मृत्यु उसी परिवर्तन की एक कड़ी है

देह त्याग का दूसरा नाम मृत्यु है देह धारण व् देह त्याग मूलतः दुःख के कारन है पर योगिओ के लिए यह कठिन नहीं-सत्य धरी जीव भी इस पड़ाव को सहजता से पार कर पते है -भगवान् शनि देव के भक्त भी इस स्थिति से सहजता से पार हो जाते है

जीव जीवन में बहुत सी प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष वेदनाओ से ग्रसित रहता है जब वेदना जेर्नोद्वर को पार  कर जाती है तो यम अपने कर्म को रूप देते है और जीव की वेदना के स्वरुप को बदल देते है यद्दपि वेदना जीअवं का अंग है तब पर भी सहन सीमा की कोई परिधि है

मृत्यु एक अन्धकार  है जहा जाने से सभी डरते है पर जो स्वयं में प्रश्काश का साधन रखते है वह इस भय से मुक्त रहते है भगवान् शनि देव उस अद्रितिये प्रकाश के दाता है


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दया धर्म का मूल है

पाप मूल अभिमान

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 पूजन भगवान् शनि देव

संकल्प

ध्यानं

आवाहन

आसन समर्पयामि

अध्य॑ समर्पयामि

अच्मनीये समर्पयामि

स्नानं  समर्पयामि

वस्त्रं समर्पयामि

गंधं  समर्पयामि

पुष्पं समर्पयामि

धूपं दीपं समर्पयामि

नवेध्यम समर्पयामि

ऋतू फलं  समर्पयामि

पंचामृत  समर्पयामि

केसरादी समर्पयामि

सुगन्धित द्रव्यम समर्पयामि

ताम्र मूलम समर्पयामि

नमस्कारं  समर्पयामि



I make obeisance under the lotus feet of Lord Ganesha who is the bestower of success and glory in life. 

I make my obeisance under the lotus feet of Lord Sri Shani Dev {great Saturn} who is by nature compassionate and kind at heart but with indifferent module for life for its ultimate benefit for here and hereafter too. 

O Lord you have been blessed by the divine mother Gauri that consort of Lord Shiva, your preceptor. 

O Lord you have blessed by the benefic sight of Lord Sri Hari all well.

O Lord you have blessed by the honor of Lord Krishna at its best to bless your devotees all well. 

O Lord you are a great son of the legendary planet Sun and brother of death god Yum,

O Lord you are being known by your very kind-hearted mother named Sri Chaaya Ji. 

O Lord you are nice all the way for fair-hearted ones and slow in pace but sharp in the act. 

O Lord you are blessed with a light fair complexion but your very sight could make a difference in life either way. 

O Lord your kind honor is the dispeller of dark from the life in its true mode. 

O Lord your honor is full of divine power to induct good for saints and tough for vile in the journey of life. 

O Lord your majesty is always along with the peoples with fair on the subject of life. 

O lord your glory is well known by the way this that you are a nicest as ever one could be to help out the true one and strongest to teach a true lesion to a demon race. 

O Lord you have been blessed with the chain of fair modes in the form of garland to your neck which reflects the fair version for your devotees all the way. 

O lord your appearance is so glorious all the way known for being the beautiful crown of truthness to your head and earrings which represents the fair listen mode for your devotees. 

O Lord you are kind enough to bless the deprived on the subject of life and strong enough to teach the lesson to those not fair either to self or the life. 

O Lord those who adore your lotus feet are taken care of through your kind honor in all respect and find themselves respected on the subject of life. 

O lord those who adore the malefic practices on the subject of life being sighted through a cruel sight of yours and face hardship to track back to the fairness of life. 

O Lord those who seek refuge in your kind honor being saved by you from every hardship of life. 

O lord those who are blessed by your esteemed blessing lived a full life like king size. 

O Lord you are truly a divine light for life, omnipresent and compassionate all the way. 

O Lord who so ever faces your transit period knows your feature all well through the track of fate either a king or a pauper. 

O Lord sufferings of king Dasrath are known to live through your transit mode. 

O Lord suffering of demon king Ravana is too known to live through your transit mode in his zodiac sign but ultimately it leads to emancipation the rarest mode for one. 

O Lord story of king Vikramaditya is also a legend of your transit mode to make one realize your verdicts for truth and fairness with the truth. 

O lord Vikramaditya was blessed by your blessing after at the conclusive mode of your transit period and obliged with the glory of true life with your grace all well. 

O Lord with the pace of your blessing one can achieve all the fourfold of being human on the planet. 

O lord your gracious help brings the life close to self and the supreme with all ease. 

O Lord your gracious help enhance the devotional spirit of one in life which is the prime factor of being a human. 

O Lord your honor with just a fair sight affects positively the longevity of life,

O Lord blessings bring happiness to varying chapters of life including sensual life. 

O Lord your honor with just a favor make a pauper a king in a fraction of time. 

O Lord your honor with just a favor earn a high truth of respect for life. 

O Lord your nine modes to enter a sign are defined by the great saints which reflects the impact of your transit mode in a sign. 

O Lord horse, elephant, Leo, and peacock are quoted to be your favorite signs as per the version of saints which induct positivity to life. 

O Lord other five reflect toughness in life to prove self. 

O Lord your very blessings is a veritable ship in the ocean of this mundane world to cross over with all glory. 

O Lord your esteemed blessing in the mundane world is the manifest philosopher’s stone and wish-granting divine cow. 

O Lord your very blessing is the cool fragrance to ease the heat of heart and soul suffering from the agonies of this selfish world. 

O Lord your esteemed blessings is a shower of divine nectar which can easily make one's inner and outer purify to meet the fate of final beatitude. 

O Lord your very blessing is the divine source of eternal happiness which is really hard to meet so in this mundane world. 

O Lord your esteemed blessings bless one to have communion with saints of the highest merit of being the man of moral and merit. 

May Lord Sri Shani dev Ji Maharaj help the devotees to teach unto the truth of true self? 
Thanks, please. 
जय श्री शनि देव महाराज 
जय कृपा गौरी सिरताज 
 रवि सूत जय छाया के नंदन 
महाबली तुम असुर निकंदन 
 विमल मंद रोद्र शनि नामा 
करहु भगत के पूरण कामा 
श्याम वरन है अंग तुम्हारा 
वक्र द्रष्टि तन क्रोध अपरा 
 क्रीट मुकट क्नुदल छवि साजे 
गले मुक्तन की माल विराजे 
 कर कुठार दुस्टन को मारण 
चक्र त्रिशूल चतुर्भुज धारण 
 गिरी राई सम तुल्य करो तुम 
तिन्ही के सर छत्र धरो तुम 
 जो जन तुमको दयां लगावे 
मन वंचित फल आतुर पावे 
 जापर कृपा आप की होई 
जो फल चाहे मिलिए सोई 
जिस पर कोप कठिन तुम ताना 
उस का फिर नहीं लगत ठिकाना 
 साचे देव आप ही स्वामी 
घट घट वासी अन्तर्यामी 
 दसरथ नृप के ऊपर आये 
श्री रघुनाथ विपन पठाए 
निसचर हाथ सिया हरवाई 
लक्ष्मण उर महू शक्ति समाही 
 इतना त्रास राम को दीन्हा 
नाश लंक्पतिकुल का कीन्हा 
 चेतक तुमने सबही देखयो 
विक्रम भूप को चोर बनायो 
 उसने छोटा तुम्ही बतायो 
राज पाठ सब धूळ मिलायो 
 हाथ पैर तुम दिया कटाई 
पाट तेलिया की हक्वाई
 फिर सुमिरन तुमरो उन कीन्हा 
दिये  पेर खुश हो कर दीन्हा 
 युगल बयाल उसको करवाए 
शोर नगर में सगरे छाए 
 जो कोई तुनको बुरा बतावे 
सो नर सुख सपनेहु नहीं पावे 
 दशा आप की सब पर आवे 
फल शुब अशुभ हाल दिखलावे 
 तिनुहू लोक तुम्हे सर नावे 
ब्रह्मा विष्णु महेश मनावे 
 लीला अदबुध नाथ तुम्हारी 
निस दिन ध्यान धरे नर नारी 
 कहा तक तुमरी करू बड़ाई 
लंका भस्म छान माई कराइ 
 जिन सुमेरी तिन अस फल चाखा
कहा तक तर्क बदवाहू साखा 
दयाल हॉट है करहु निहालु 
टेडी दृष्टी है कठिन करालू 
 नो वाहन है नाथ तुम्हारे 
गर्द्हब अश्व और गज प्यारे 
मेष सम्भुक जाम्बुक मग नाना 
काम मयूर हंस पहिचाना 
गर्दभ चडी जिस पर तुम जाओ 
मांग भंग उसका करवाओ 
छाडे घोड़े जिस पर तुम आओ 
उस नर को धन कराओ 
हाथी के पावन सुख भारी 
सर्व सिद्धि नर को हर जारी 
 जो मेडा के वाहन जाओ 
रोग मनुष्य के तन मे छावो 
 जाम्बुक वाहन चडे पधारो ते 
नर से हो युद्ध कराओ 
आये सिंह चडे जेहि ऊपर 
दुसमन उसका रहे ना भू पर 
जिसको काम सवारी घेरू 
उसको आई काल मुख घेरू 
मोर चडे राशी जो चिन्हे 
धन संपत्ति उस को बाद दीन्ही
 हंस सवारी जिस पर आवत 
उर नर को आनंद दिखावत 
 जय जय जय शनि देव दयालु 
कृपा दास पर करहु कृपालु 
 यह दस बार पाठ जो करे 
कटही कष्ट सुख निसिदिन रहे 
 छीतरमल शानिजू को चेरा 
नगर हाथरस करेही बसेरा 
 जयति जयति रवि तनये 
प्रभु सकल हरहु भ्रम शूल 
 जन की रक्षा कीजेये 
सदा रहो  अनुकूल
 जय श्री शनि देव 
जय श्री शनि देव 
 जय श्री शनि देव
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श्री शनि  कृपा से सभी प्राणी सुखी हो जाये
कोई भी दुखी ना हो, सभी रोग-दोष मुक्त हो जाये
सभी जीव परम सत्य को प्राप्त कर निज सुख की अनुभूति प्राप्त करे
सभी को परम शांति व् परमानन्द  की प्राप्ति हो
सभी श्री शनि  कृपा के पात्र हो जाये 
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तू दयालु दीन हौं
तू दयालु - दीन हौं - तू दानि - हौं भिखारी
हौं प्रसिद्ध पातकी - तू पाप-पुंज-हारी
नाथ तू अनाथ को - अनाथ कौन मोसो
मो समान आरत नहिं - आरति हर तोसो
ब्रह्म तू - हौं जीव - तू ठाकुर - हौं चेरो
तात-मात - गुरु-सखा - तू सब विधि हि तु मेरो
तोहिं मोहिं नाते अनेक - मानियै जो भावै
ज्यों त्यों तुलसी कृपालु - चरन-सरन पावै
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