आकाल मृत्यु हरणम मृत्यु निवारणंमृत्युंजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्दातार सर्वभव्यानामं भक्तानामं भयंकरममृत्युंजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्काल रूपेण संसारम भक्षयन्तं महाग्रहममृत्युंजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्कारणं सुख दुखाना भावा भाव स्वरूपिणममृत्युंजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्सर्वेषामेव भूतानां सुखदं शान्तं व्ययम्मृत्युंजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्
कृष्णवर्णहयश्वेव कृष्णगोक्षीऱसुप्रिये
कृष्णगोधृतसुप्रीत कृष्णगोदधिषुप्रिय
कृष्णगोदानसुप्रिये कृष्णगोदत्तहृदय
कृष्णगोग्रासचितस्य सर्वपीड़ानिवार्कम
अघोररूपों दीर्धकाय परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः
अद्रितिये अपराजितो परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः
अतितेजो अनन्तो परम सोभ्यम शनैश्चराय नमः
आनंदमय आनंदकर परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः
आत्मरक्षक परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः
आत्मरूप परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः
एश्वर्यफलदा परमसोभ्यम शनैश्चराय नमः
मंदार कुसुम प्रिये शनैश्चराय नमः
मल्लिका कुसुम प्रिये शनैश्चराय नमः
शमी पत्र प्रिये शनैश्चराय नमः
विप्र प्रिये शनैश्चराय नमः
विप्र रूप शनैश्चराय नमः
नामपरायन प्रीतो शनैश्चराय नमः
संत हितकारी शनैश्चराय नमः
विप्रदान बहु प्रिये शनैश्चराय नमः
शरणागत वत्सल शनैश्चराय नमः
शिवमंत्रजप प्रिये शनैश्चराय नमः
शतभिषा शनि वासरे आनंद योगकारकं
अनुराधा शनि वासरे अमृत योगकारकं
पुनर्वसु शनि वासरे छत्र योगकारकं
स्वाति शनि वासरे सिद्धि योगकारकं
विशाखा शनि वासरे शुभ योगकारकं
श्रवण शनि वासरे सुस्थिर योगकारकं
अश्लेशा शनि वासरे मानस योगकारकं
-------------------
ॐ नमस्ते कोण पिङ्गलाय नमोस्तुते-
नमस्ते विष्णु रूपाय कृष्णाय च नमोस्तुते
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते काल्काएजे
नमस्ते यंमसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते
नमस्ते कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य नमामि च
------------------
ॐ कालत्रय महाकाल मृत्युंजय नमो अस्तुते
ॐ सृस्ती रुपें देवेश मृत्युंजय नमो अस्तुते
ॐ कारण सर्वतीर्थाना मृत्युंजय नमो अस्तुते
ॐ भावभाव परिच्छिन्न मृत्युंजय नमो अस्तुते
ॐ सांख्य योगेस्य हंसस्ये मृत्युंजय नमो अस्तुते
ॐज्ञानिना ज्ञान रूपोऽसि मृत्युंजय नमो अस्तुते
ॐ सर्वमाया कलातीते सर्विन्द्रेये मृत्युंजय नमो अस्तुते
-----------
विशाम्पति शनैश्चराय नमः
सर्व वासी शनैश्चराय नमः
अर्थकर शनैश्चराय नमः
सर्वकामद शनैश्चराय नमः
सर्वकालप्रसादःशनैश्चराय नमः
निमित्तं शनैश्चराय नमः
सर्वदा शनैश्चराय नमः
सर्वगंधसुखावहःशनैश्चराय नमः
तरन तारण शनैश्चराय नमः
गुणाधिक शनैश्चराय नमः
आषाढ़ शनैश्चराय नमः
तीर्थदेव शनैश्चराय नमः
वरदः शनैश्चराय नमः
तपोमय शनैश्चराय नमः
शोभन शनैश्चराय नमः
कामधेनु शनैश्चराय नमः
कृष्न्केतु शनैश्चराय नमः
कृषकृष्णदेह शनैश्चराय नमः
कृष्नाम्बर प्रिय शनैश्चराय नमः
सर्व साधन शनैश्चराय नमः
सर्व पावन शनैश्चराय नमः
सर्वपापहरो शनैश्चराय नमः
कपिला क्षीर पनास्य शनैश्चराय नमः
सर्वयोगी महाबल शनैश्चराय नमः
असाध्यरोगहर शनैश्चराय नमः
तपस्वी तारको धीमान शनैश्चराय नमः
भक्ति गंभ्यम परमब्रह्म शनैश्चराय नमः
------------
पराक्रम भाव कारकं
शश योग कारकं
शत्रु रोग आदिव्यधि हर भाव कारकं
लाभ भाव कारकं
राज योग कारकं
भ्रमण योग कारकं
शुभ योग कारकं
सुरपति योग कारकं
देव योग कारकं
कैलाश योग कारकं
महाराजाधिराज योग कारकं
कैलाश योग कारकं
धर्म योग कारकं
दिव्य योग कारकं
मुनि योग कारकं
अमितआयु योग कारकं
श्री नाथ योग कारकं
मोक्ष योग कारकं
-------------
आयु प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः
सुख शांति प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः
यश कीर्ति प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः
ज्ञान मान प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः
सर्व सिद्धि प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः
अभिष्ट फल प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः
अक्षय फल प्रद श्री श्री शनि देवाय नमः
------------
शनि प्रदोष भक्ति पद दाई
रिक्ता तिथि शनि वासरे सिद्धि
-------------
श्री श्री अत्री ऋषिये नमो नम
श्री श्री भरद्वाज ऋषिये नमो नम
श्री श्री गौतम ऋषिये नमो नम
श्री श्री कश्यप ऋषिये नमो नम
श्री श्री वशिष्ट ऋषिये नमो नम
श्री श्री विस्वमित्र ऋषिये नमो नम
श्री जमदग्नि ऋषिये नमो नम
------------
स्वग्रही शनि परम सुखदाई
मित्रग्रह शनि पुण्य फलदाई
मूलत्रिकोन चतुर प्रभुताई
तुला राशी शनि वासरे परम पद दाई
सखा संग सहज सुखदाई
शुक्र युक्त शनि शुभ दृष्टीमय परम सुख दाई
बुधयुक्ति बहुविधि सुखकारी
त्रितिये शनि पराक्रम करी
छट भाव शनि रोग दोष हारी
लाभ भाव शनि धनप्रद शुभचारी
वृष राशी शुभ व् धन कारकं
मिथुन राशी धन कारकं
मकर राशी शुभ कारकं
कुम्भ राशी शुभ कारकं
------------
कृतिका शनि धान्य सुखदाई
आद्र शनि भगति सुख करी
पूर्व भद्र शनि मेघ फल दाई
चित्रा शनि बहु लाभमय
मूल शनि वासरे शुभ प्रद
धानिस्ट शनि मेघप्रद
-----------
शनि काल
भगवान का द्वार है शनि काल
आत्म कल्याण का मार्ग है शनि काल
निज दर्शन का साधन है शनि काल
प्रभु मिलन का योग है शनि काल
भव पाश से मुक्ति का साधन है
-------
शनि मात्र एक गृह नहीं अपितु सनातन सत्य है
शनि स्वयं में सत्य की एक परिपूर्ण व्याख्या है
शनि जीव व् प्रकृति का परिपूर्ण सत्य है
शनि एक अद्रितीय सत्य है
शनि सत्य प्राप्ति का एक साधन व् स्वयं में परिपूर्ण सत्य है
----------
शनि काल व् अमृत धारा
शनि काल में अमृत धारा का प्रवाह निरंतर होता है और ज्ञानी इस प्रवाह का परिपूर्ण लाभ प्राप्त करते है
अमृत वह तत्व है जो आत्मा को तृप्त करता है
यह आत्मा की तृप्ति हेतु परम साधन है
कलि काल में शनि काल में यह परम सहज स्वर्रोप में प्राप्त होता है जो आत्मा के परमात्मा से मिलन में परम सहायक सिध्द होता है
अमृत स्त्रोत
ज्ञान वह अमृत है जो जीव को ब्रह्म तुल्य कर देता है शनि काल अध्यातम व् आत्म ज्ञान का भण्डार है
भक्ति वह अमृत है जो ह्रदय कोपावन कर देती है और शनि काल में यह अनंत गति से बहती है
सत्य जो कर्म के समर्पण हेतु परम सहायक है शनि काल में जीव के समीप वास करता है
भगवत प्रेम अमृत से भी अधिक है जो शनि काल में सहज रूप से प्रगट होता है
संत वचन किसी अमृत से कही अधिक प्रभावी होते है और शनि काल में यह जीव तक सहज भाव से पहुच जाते है
संत दर्शन स्वयं में एक अनूप अमृत है जो शनि काल में सहज रूप में प्राप्त होता है
वनस्पति जगत में तुलसी से बढकर कोई अमृत नहीं और शनि काल में इसकी भक्ति सेवा सहज स्वरुप में उपलब्ध होती है
धारा पर तीर्थाटन भी अमृत तुल्य है-शनि काल में तीर्थाटन के अवसर सहज रूप से प्राप्त होते है
गंगा जल साक्षात् अमृत है जो जीव को शनि काल में सहज स्वरुप में प्राप्त होता है
भगवन सामीप्य
----------
सभी जीवो पर शनि की बराबर दया
अंडज पिंडज स्वेदज व् जरायुज चार प्रकार से जीव देह धारण करता है
अंडज -जो अंडे से प्रगट होते है अंडे से उत्पन्न जीवो के कान का उभार नहीं होता born of eggs
पिंडज-जो गर्भ से प्रगट होते है Born of embryo with an outer membrane
स्वेदज-जो परिस्तिथि से अतार्थ पसीने व् अन्य नमी व् दूषित संज्ञा born of warm vapor or sweet
जरायुज-जो वनस्पति के रूप में प्रगट होते है
Spouting from beneath the ground-plants and trees or so
सभी जीवो पर शनि की बराबर दया रहती है पर मनुष्य पर विशेष
------------
शनि एक सत्य
शनि मात्र एक गृह नहीं अपितु सनातन सत्य है
शनि स्वयं में सत्य की एक परिपूर्ण व्याख्या है
शनि जीव व् प्रकृति का परिपूर्ण सत्य है
शनि एक अद्रितीय सत्य है
शनि सत्य प्राप्ति का एक साधन व् स्वयं में परिपूर्ण सत्य है
----------
शनि काल में आचरण
दीन दुखियो के प्रति सद्भाव
धर्म के प्रति निष्ठां
सत्य का मान
गुरु माता पिता का मान
यथोचित दान
मन में सेवा भाव
कुटिलता का सर्वदा त्याग
प्रकृति का सामीप्य
भागवत प्रेम
----------
-----------
ज्योतिष ज्ञान प्रदायकम शनैश्चराय नमः
ज्ञान निधि शनैश्चराय नमः
परम नित्य शनैश्चराय नमः
परम प्रकाशात्मा शनैश्चराय नमः
शांत रूपी शान्तस्य शनैश्चराय नमः
मकर्कुम्भाधिपति शनैश्चराय नमः
प्राण रुपी प्राण धारी शनैश्चराय नमः
सर्वहितकारी पुराण पुरुषोतम शनैश्चराय नमः
परम पावन परम हंसस्वरूप शनैश्चराय नमः
महावीरो महाशान्तो महासुतो शनैश्चराय नमः
कर्म प्रिये सत्य प्रिये न्याय प्रिये शनैश्चराय नमः
----------
मंदार कुसुम प्रिये शनैश्चराय नमः
मल्लिका कुसुम प्रिये शनैश्चराय नमः
शमी पत्र प्रिये शनैश्चराय नमः
विप्र प्रिये शनैश्चराय नमः
विप्र रूप शनैश्चराय नमः
नामपरायन प्रीतो शनैश्चराय नमः
संत हितकारी शनैश्चराय नमः
विप्रदान बहु प्रिये शनैश्चराय नमः
शरणागत वत्सल शनैश्चराय नमः
शिवमंत्रजप प्रिये शनैश्चराय नमः
शनि काल
पभु का द्वार है शनि काल
आत्म कल्याण का मार्ग है शनि काल
निज दर्शन का साधन है शनि काल
प्रभु मिलन का योग है शनि काल
भव पाश से मुक्ति का साधन है
----------
सत्य चित आनंद मार्ग -की खान है शनि काल
सत्य -जिसकी परिपूर्ण सत्ता है
चित- जो चेतना का कारण भूत
आंनद- आत्मिक सुख
----------
शनि काल व् समाधी
शनि काल जीवन यात्रा का अहम् पड़ाव होता है
इस पड़ाव में भक्ति, ज्ञान, योग, ध्यान, समाधि सभी जीव को निज स्वर्रोप हेतु प्रेरित करते है
भक्ति से ज्ञान की संज्ञा है
ज्ञान से योग की
योग से ध्यान की
व् ध्यान से समाधि
समाधि में जीव निज स्वरुप का दर्शन करता है
निज दर्शन से जीव को भगवत प्राप्ति होती है
भगवत प्राप्ति से ही मोक्ष का साधन होता है
इन सभी क्रियाओं हेतु शनि काल परम सहायक है
भगवत प्रेम ही मोक्ष का परम साधन है
--------
शनि सुख साधन सन्देश
सही सोच से क्रोध को घटाना
यथोचित दान से लोभ घटाना
ज्ञान से मोह घटाना
भागवत प्रेम से काम घटाना
विनम्रता धारण कर गर्व घटाना
नाम जाप से पाप घटाना
सत्कर्म से निज स्वरुप पाना
त्याग से तेज बढाना
योग से आयु बढाना
नित चिंतन से ज्ञान बढाना
परमार्थ से मान बढाना
दया से धर्म
-----------
Teachings of the period of lord Saturn in transit
Live a moral life
Live a truthful life
Live a realized life
Live a trusted life
Live a meaningful life
Never hurt anyone even in thoughts
Never indulge in activities against nature
Never cheat the saintly soul & pious one
Never seek ill of anyone
Never lies to anyone
---------
Saturn helps in attaining all the three states of worship on the cord of penance_
Worship of gods, Brahmans, teachers, parents and the wise, purity rectitude, celibacy, and harmlessness are said to be penances of the body
Inoffensive, truthful, agreeable, and beneficial speech of scripture and muttering of the name is said to be penances of speech
The tranquility of mind, serenity, the habit of meditation on God, self-control, and purity of heart-these are said to be penances of the mind.
--------
O mind, the transit of Lord Saturn is more than blessings on the cord of life to attain the true meaning of being human
Keep longing at heart for the secret that is hard to reach at
The grace of the Lord gives the clue to that eternal abode
Devotees meet the grace of the lord
And realize the truth
And experience the true self
The path of bliss for which in the vein
Even gods and angles pray-
Manifest by the grace of the lord in transit
To peep within and behold what lies beyond this dark curtain
The secret of fourteen realms will certainly be disclosed to
In transit of Lord Saturn that keeps faith in
The path of the beloved lies within the self
Just keep love and patience
Lord, indeed, will give light to find a true glimpse
--------
let no one burn in delusion, like the moth at the sight of a lamp
As a fish, in satisfying its plate, is separated from the water and dies being unaware of the net laid underneath it brings torture to the body
The span of lord Saturn warns one of the dangers of delusion to be safe to make a safe passage from the ocean of mundane existence
--------
No other age can compare with the kali age-provided that man has faith in its virtues; for in this age one can easily cross the ocean of transmigration simply by singing the praise of the lord
-----------
Self hidden in all beings is not revealed to all, sages and saints of keen intelligence alone see it with the help of sharp and acute reason in the tenure of Saturn because that suits the most for the purpose.
------------
If anyone lacking intelligence, discretion, and knowledge can possibly redeem if cultivating the fellowship of saints and following their direction, pursues a course of discipline recommended by them.
If a man awakes at the last moment can also be redeemed through the highest degree of earnestness.
Immoral, libidinous, sensual, and addicted too can be redeemed very quickly though realization unto self and the supreme with refuge in the lotus feet of the lord.
Who so ever takes refuge in lord Saturn make it purify self for the redemption at its best.
Evil eventually causes its own destruction
Indeed the truth is supreme but still, it needs to be presentable
---------
One who performs all his duties for the sake of God-depend on him-devoted to and has no undue attachment and is free from malice towards all beings attains God.
--------
Message of Shani kaal_
for one's spiritual good strenuous efforts should be made to cultivate devotion, spiritual knowledge, and dispassion and practice virtue and should never give up righteousness on any account from concupiscence, greed, fear, or bashfulness even under the most trying circumstances.
-----------------
One who performs all his duties for the sake of God-depend on him-devoted to and has no undue attachment and is free from malice towards all beings attains God.
---------
Lord Saturn teaches us to be frugal and simple in life so that we may lend our helping hand to others who are needier
---------
Without any ill-feeling towards any living being in thought, word and deed; with knowledge and understanding of gods, Grace is the definition of truthful life to be a favorite of lord Saturn.
---------
No one can find the ultimate truth through mimicking show those who fill their pots with drops of celestial melodies pave the path by the grace of the lord.
--------
This human body is a storehouse of celestial centers, all cosmic abodes are within the body; wondrous plays are going on within and one needs to take shelter in truth to save guard self-refuge in the lotus feet of lord Saturn makes one reach a safe shore.
--------
Those who keep faith in the lord, the lord guides them at every step of life in an invisible mode
Those who serve the mankind and nature in love with Lord, attain the all the four rewards designated for human life
Lord is the giver of health, prosperity, wisdom, and eternal joy in his tenure to the concern that keeps faith in the mercy of the lord
Fear of death can be conquered through concentration unto self through meditation-ultimately this leads to unison with the supreme soul by the grace of Lord Saturn
Life is a light and sound show on the pre-written script with a cushion to write the script for next
Man and God dwell along-overwhelmed by troubles man grieves at his helplessness but when finding god along with delights and his trouble passes away
The darkness of life can be eliminated by the light of true knowledge, lord is the light of lights beyond darkness-to dispel the darkness of ignorance
We cannot move unless he makes us move-firm belief in Lord certainly gives us the courage to fight all odds in life and society to make our lives sublime
There is no light that removes the dark of delusion which pains the life deep till soul but the divine one and Lord Saturn is the giver of divine wealth
Those who wish to take liberation should take refuge in Lord Saturn who is the giver of mode that makes one realize self at its best
Virtues acquired by sacrifices are never lost and move along as tangible help in both the worlds
Lord possesses endless virtues, infinite strength, and compassionate nature
Mind intellect and senses may help one on the subject to reach God but self alone is the one that can make it
The divine law of justice is very simple as one sow, so shall reap
God exist-this acknowledgment is enough for one in life, the rest is for God to make it
----------------
Karma_
Lord Saturn indicates the law of karma through varying means in his tenure.
Karma is the path of life.
Nobody can remain without doing any work even for a single moment at any time. all peoples are bound to do the work, as per their habit and fate that co-relates to the inner cell and Sat Raj and Tam designated on the cord of fate in a specific orbit.
Without doing work journey of life cannot be carried on even to maintain the body one needs to work and if it is given a true direction that leads to wisdom is the message of the time period of transit of lord Saturn.
---------
जीवन में रोग या शारीर का नाश अधिक चिंता का विषय नहीं अपितु चिंता का विषय है भागवत प्राप्ति से विमुखता -साधन सुख की चिंता में अमूल्य जीवन को खोना चिंता का विषय है मनुष्य देह पाकर भी सत्य से विमुख रहना चिंता का विषय है मनुष्य जीवन मोक्ष द्वार है इस द्वार पर आकर भी परमात्मा का दर्शन नहीं कर पाना चिंता का विषय है शनि काल में भी सत्य से विमुख रहना स्वयं में कही बड़ी भूल पर चिंता का विषय है शनि काल चेतना हेतु परम साधन है शनि काल में भी चेतना प्राप्त ना होना चिंता का विषय है
--------
शनि काल एक तीर्थ के सामान होता है और जीव को इसका सत्य समझाना चाहिए -शनि काल की तीर्थ यात्रा जीव को आत्म दर्शन का बोध कराती है इस यात्रा में जीव निज स्वरुप को प्राप्त कर भागवत ज्ञान का दर्शन करता है जो स्वयं में मोक्ष कारक है
------------
भगवान् शनि देव समस्त सांसारिक क्लेशो को हरने वाले, सुख संतोशो को प्रदान करने वाले, काम क्रोध को सही दिशा देने वाले, कीर्ति का विस्तार करने वाले परम देव है भक्तो के सब प्रकार से हितेश है भगवान् शनि देव -भक्त इन्हें जब जब जहा पुकारते है यह अपने योग बल से तुरत ही भक्त की समीप पहुच जाते है भगवान् का सामीप्य पाकर भक्त स्वत ही पीड़ा से मुक्त हो जता है
-------
शनि तत्व
वात पित और कफ देह सञ्चालन के प्रमुख तत्व है प्रत्येक तत्व की अहम् भूमिका है तीनो तत्वों का सही समावेश ही स्वस्थ्य शरीर की महिमा हेतु परम आवश्यक है
वायु तत्व मूल रूप से शनि द्वारा प्रभावित होता है
वायु ही प्राणों का आधार भी है
देह में नियमित वायु का सञ्चालन ही कर्म व् भोग हेतु परम सेतु है
वायु के दबाब की सही स्थिति ही योग का आधार भी है
पञ्च वायु की अपनी महिमा है
पञ्च वायु की स्थिति के दोष प्रद होने पर पञ्च विकार उत्पन्न होते है
पञ्च विकार से देह व् मन के विकार उत्पन्न होते है
शनि शरणागति से पञ्च विकार दूर होते है यह परम सत्य है
------------
शनि कृपा पात्र हेतु साधन
दीनन पर दया
सत्यमय जीवन
पीपल सेवा
अपंग सहायता
गुरु पूजा
महादेव पूजन
सत्य उपासक
तिल तेल दीपक
अन्न दान
कृष्ण वस्त्र दान
कृष्ण गो सेवा
कृष्ण पूजन
पित्मात सेवा
अमावस्या मान
संध्या वंदन
इन्द्रिनिग्रह
संतुष्ट
सबही मानप्रद आप अमानी
दयामय हृदये
भक्तमय
सत्संग
हवन यज्ञ
मंत्र जाप
परमार्थ
संत सेवा
धर्म मान
सनातन सत्य धारक
श्रद्धा धारक
संध्या वंदन
सदाचार
भागवत तत्व प्रचारक
शांति प्रिये
प्रदोष मान कर्ता
भक्त मान प्रकाशक
वृद्ध सहायक
अनाथ सहायक
श्री राम कथा
----------------
शनि काल के कुछ विशेष लाभ
संत दर्शन
संतो का संग
संत कृपा
तीर्थाटन
सत्य का अनुभव
भक्ति पथ लाभ
तत्व बोध
निज स्वरुप परिचय
धर्म की प्राप्ति
--------
योग माया
शनि काल योग माया से परिपूर्ण होता है यहाँ योग पग पग पर उप्लब्द रहते है जीव की सहातार्थ -योग अनंत है और सभी जीव के दुखो के नाशक है
सांख्य योग-अहंता व् ममता को परिपूर्ण कर सर्व व्यापी परमात्मा से एकीकृत करता है
कर्म योग-फल और आसक्ति को त्याग कर कर्म हेतु प्रेरित करता है
भक्ति योग- साकार ब्रह्म के स्वामित्व को स्वीकार कर श्रधा से उसी में चित को तन्मय करता है
ध्यान योग- शुद्धता से चित को स्वयं में लीन कर भागवत प्राप्ति का साधन है
अष्टांग योग-इन्द्रियों का निग्रह कर मन को ह्रदय में आत्मा के समीप स्थित कर प्राणों को मस्तिष्क से परिपूर्ण कर पांच वायु से हवन कर स्वयं को भितिरी तेज तत्व के माध्यम से भागवत तत्व में लय करना अष्टांग योग की संज्ञा को प्राप्त है
हठ योग- राज योग -लय योग की अपनी संज्ञा है और यह सभी शनि काल के साधन है
योग की प्राप्ति में आठ सोपान है जो योग यात्रा को सुगम बनते है
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रत्याहार
धरना
ध्यान
समाधी
---------
प्राणायाम-प्राणायाम की महिमा अपरंपार यह योगियों का परम साधन है यह प्राणों का व्यायाम है पर सावधानी परम आवश्यक है क्यों की यह प्राणों का विषय है प्राण से ही जीव की संज्ञा है प्राण ही जीवन
--------
निंद्रा
निंद्रा जीवन का अहम् अंग है यह जीव को चेतना की और ले जाती है
यह जीवन में नई स्फूर्ति प्रदान करती है
सांसारिक विषयों का चिंतन करते
जो निद्रा प्राप्त होती है वह जीव को भाव सागर के तट पर ले आती है
भागवत चिंतन में जो निद्रा प्राप्त होती है वह जीव की भीतर सत्य का समावेश करती है और जीव को भव पार ले जाने का साधन करती है शनि काल में भव पार लगाने वाली निद्रा सहज ही प्राप्त होती है
------------
स्मृति
स्मृति दो प्रकार की होती है क्रियात्मक व् ज्ञानात्मक क्रियात्मक निरंतर नहीं रहती व् ज्ञानात्मक सदेव युग युग तक साथ रहते है जैसे ही जीव जीवन रूपी भूमि में भक्ति की खाद डालते है यह स्वत ही प्रगट हो जाती है
कर्म
सभी जीव कर्म बंधन से बंधे है कर्म का फल स्वयं में बंधन है वह सुख का हो या दुःख का दोनों ही चित वृति का स्वरुप है वृति की उत्पत्ति का अंत तय है पर परमानन्द व् प्रेम अनंत है जो भगवत चरणों में समर्पण से प्राप्त होता है
अहिंसा-सत्य-अस्तेय व् धर्म का पालन सभी प्राणियों के कल्याण का विषय है यह भगवत तत्व प्राप्ति हेतु परम आवश्यक भी है
सत्य निष्ठ विद्या व् विनय युक्त ब्रह्मण ब्रह्म तुल्य होता है
यह एक भूल है स्वयं को असहाय समझाना, भगवान् शनि देव सभी के सहायक है, असहाय के तो परम सहायक है भगवान्-
निर्बल के बल भगवान् शनि देव
----------
पूजा की सात पुष्प
अहिंसा, इन्द्रिय निग्रह, दया, क्षमा, मनोनिग्रह, ध्यान, सत्य
---------
युग बदलते है सत्य त्रेता द्वापर और कलि काल अपना वाचास्व प्रगट करते है पर जीव स्थिति बंधन गति को ही साधती है - है परमात्मा अटल सत्य जो परिवेर्तानीय नहीं है- सत्य ही उसका साधन है और सत्य ही उसकी गति है सत्य को साध कर जीव इस परिवर्तानिये स्थिति से मुक्त हो सकता है यही शनि सन्देश है जीव मुक्ति हेतु
रे मन, पहले की अवस्था- पहले की परिस्थिति- पहले की संगति- पहले का समय कहा है और जो अब है वह भी अब की तरह न रहेगा, जैसे पहले वाले बदल गए ये भी बदल जायेगे, अकेला आया है अकेला ही जायेगा सत्य को अपने ले वह सदा-सदा का संगी है साथ निभाएगा अंत काल ही नहीं उसके बाद भी संग जायेगा यही शनि सन्देश है जो अपनाएगा नित नूतन निज स्वरुप पायेगा आत्म सुख ही नहीं केवलं सार भी पायेगा
--------
प्रार्थना
भगवान् शनि देव के चरणों में की गई प्रार्थना सहज ही सफल होती है शनिवार को भगवान् सभी की प्राथना स्वीकार करते है भक्त अभक्त के भेद के बिना ही भगवान् दुखियो के दुःख दूर करते है संध्या वंदन भगवान् स्वयं स्वीकार करते है किन्ही कारणों से यही प्रभु के चरणों में प्राथना फलित ना हो तो जो जीव निराश नहीं होना चाहिए और पुन प्राथना करनी चाहिए सत रुपी प्राथना हेतु शुक्रवार संध्या काल व् राजस प्रार्थना हेतु बुधवार प्रात काल सहायक सिद्ध होता है
भगवान् शनि देव किसी को निराश नहीं करते -शनि संध्या वंदन के बाद भगवान् इच्छित फल प्रदान करते है फल के स्प्रस्ट साकार होने में कुछ समय लग सकता है जीव को धर्य धरना चाहिए भगवान् शनि देव अपने गुरु शिव सामान ही महादानी है नित्य के दानी है
-----
परमात्मा से साक्षात्कार करने का साधन अंतर मुखी पूजा -अंतर मुखी पूजा के दाता है भगवन शनि देव
सच्चे संत व् महात्मा के दर्शन से होती है आत्म अनुभूति-संत दरस के कारक है भगवन शनि देव
काया प्रगटे का सूत्र है शब्द-शब्द के सूत्र कार ब्रह्म-ब्रह्म के पथ प्रकाशक भगवन शनि देव
कर्म की सत्ता अटल है कर्म का फल भी अटल है फल के दाता है भगवन शनि देव
काया का संभंध है कर्म से-कर्म का सम्भन्ध है आत्म तत्व से -कर्म गति प्राप्त आत्म तत्व फल निर्णायक है भगवन शनि देव
कर्म से देह - देह से कर्म यही चक्र है यही बंधन है इस बंधन से मुक्ति ही मोक्ष है सहायक है भगवन शनि देव
सत्संग से मन का मैल दूर होता है सत्संग के दाता है भगवन शनि देव
भागवत प्रेम से प्राप्ति होती है परिपूर्ण सत्य की भागवत प्रेम के दाता है भगवन शनि देव
सुख सागर का तट है सत्य- सत्य के प्रकाशक है भगवन शनि देव
---------
जीवन का सत्य
जीवन स्वयं में पूर्ण नहीं पर यह आत्मा की परिपूर्णता का साधन है
सभी जीव अपनी पूर्णता से भिन्न होने के कारन दुखी है
जीवन की व्याख्या सहज नहीं पर यह जीव के सुख दुःख हेतु साधन है
जीवन एक यात्रा है जो अपनी परिपूर्णता की खोज हेतु कर्म के आधीन है
जीवन में आयु की सीमा अदृश्य है यह शनि माया का रूप भी है और शनि कृपा की छाव भी
जीवन में हानि लाभ सुख दुःख जीवन मृत्यु सब विधाता के अधीन है
जीवन एक धारा है जो जीव आत्मा को अपने प्रवाह में लिए जा रही है
भाग्य शाली है वो आत्मा जो बिना भटके इस धरा के सहारे सागर को प्राप्त कर लेती है
जीवन में जीव ही जीव का शत्रु है यही जीव की सबसे बड़ी वेदना है
जीवन की यह यात्रा अनंत तो नहीं पर चलती रहती है जन्म व् पुनार्जमं की राह-जब तक परिपूर्णता से भिन्न है
जीव की परिपूर्णता सत्य में निहित है-जीवन का परम सत्य कर्म भोग व् मोक्ष द्वार
संसार के सभी दुखो में तृष्णा दीर्ध काल तक दुःख देती है
तृष्णा का मूल कारण भी शारीर है और यह शारीर के विविद शूलो की बिन्दु भी है
लघु कल्याणी अतार्थ शनि की ठईया जीव को निज स्वरुप का बोध कराती है जीव के परम कल्याण की रचना करती है
रे मन तू सांसारिक साधनों से अधिक भगवान् शनि का भरोसा कर, उन की दया की कोई सीमा नहीं, उनकी कृपा भक्तो की साये की तरह रक्षा करती है
मृत्यु एक अटल सत्य है मृत्यु के देवता यम है जो शनि देवता के छोटे भाई है और शनि आज्ञा से जीव की देह परिवर्तन को रूप देते है शनि भक्तो के निमित विशेष आदर रखते है
परिवर्तन प्रक्रति का नियम है जो धरा पर सजग रूप से प्रकाशित है मृत्यु उसी परिवर्तन की एक कड़ी है
देह त्याग का दूसरा नाम मृत्यु है देह धारण व् देह त्याग मूलतः दुःख के कारन है पर योगिओ के लिए यह कठिन नहीं-सत्य धरी जीव भी इस पड़ाव को सहजता से पार कर पते है -भगवान् शनि देव के भक्त भी इस स्थिति से सहजता से पार हो जाते है
जीव जीवन में बहुत सी प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष वेदनाओ से ग्रसित रहता है जब वेदना जेर्नोद्वर को पार कर जाती है तो यम अपने कर्म को रूप देते है और जीव की वेदना के स्वरुप को बदल देते है यद्दपि वेदना जीअवं का अंग है तब पर भी सहन सीमा की कोई परिधि है
मृत्यु एक अन्धकार है जहा जाने से सभी डरते है पर जो स्वयं में प्रश्काश का साधन रखते है वह इस भय से मुक्त रहते है भगवान् शनि देव उस अद्रितिये प्रकाश के दाता है
-------
भगवान् शनि देव समस्त सांसारिक क्लेशो को हरने वाले, सुख संतोशो को प्रदान करने वाले, काम क्रोध को सही दिशा देने वाले, कीर्ति का विस्तार करने वाले परम देव है भक्तो के सब प्रकार से हितेश है भगवान् शनि देव -भक्त इन्हें जब जब जहा पुकारते है यह अपने योग बल से तुरत ही भक्त की समीप पहुच जाते है भगवान् का सामीप्य पाकर भक्त स्वत ही पीड़ा से मुक्त हो जता है
-------
संत चरणों में अपना दुःख प्रगट करने से दुःख कम हो जाता है शनि काल में सच्चे संतो का संग सहज सुलभ होता है
------
संसार गति के अधीन है संसार में जीवन भी गति के अधीन है यह गति ही जन्म मरण की जननी है जीव सदा ही गति के अधीन कर्म के वशीभूत रहते है कर्म ही देह धारण का मूल सूत्र है- देह दुःख दुःख का भवर है -सत्य को साधने से ही जीव इस भवर से अपने को बचा सकता है यही शनि सन्देश है
------
जो मनुष्य भक्ति को व्यवहारिक सुखो का साधन बना कर इस्तेमाल करते है वह स्वयं को स्वयं से दूर करते है
भक्त सदेव निर्मल मन के धनी निर्भय व् परम नित्य गति को प्राप्त होते है शनि कृपा से निज सुख की अनुभूति प्राप्त करते है
भक्त को जीवन में बहुत से परीक्षाओं से गुजर्रना से गुजरना पड़ता है जो स्वयं में विकराल व् दुःख दाई होती है पर भक्त दुखो को छुपा कर मुस्कान ही प्रभु के चरणों में समर्पित करते है
------
भगवान् शनि देव की महिमा अपरमपार है
भक्तो को परिपूर्ण वैभव प्रदान करने वाले भगवान् शनि की जय
सर्व व्याधि विनाशकम
सर्व शत्रु विमर्दनम
अविद्या नाशकं
कालसहोदर
अनंत पुन्य फलदाय
दीन हितकारी संत सुखकारी
भगत भयहारी परम शुभ कारी
सत्ययुग में भगवान् का ध्यान त्रेता में यज्ञों द्वारा और द्वापर में उनका पूजन करके मनुष्य जिस फल को पाता है, उसे वह कलियुग में शनि प्रिये कृष्ण कीर्तन करके प्राप्त कर लेता है।
------
सत्य
सत्य की कोई सिमित परिभाषा नहीं
सत्य अनंत है
सत्य की परिपूर्ण सत्ता है
सत्य की गरिमा सत्य में ही निमित है
सत्य असीम है
सत्य स्वयं में एक अद्रितिय प्रकाश है जो ब्रह्म, जीव व् माया का प्रकाशक है
भक्ति का रूप है सत्य
तप का तेज है सत्य
जीवन का सत्य देह
देह का सत्य समय
समय का सत्य गति
भोतिक सत्य दर्शन द्वारा प्रतिपादित
अध्यात्मिक सत्य अनुभव द्वारा प्रतिपादित
देविक सत्य अनुभूति द्वारा प्रतिपादित
जीव का अंतिम सत्य मृत्यु
आत्मा का अंतिम सत्य परमात्मा
--------
मृत्यु एक अटल सत्य है मृत्यु के देवता यम है जो शनि देवता के छोटे भाई है और शनि आज्ञा से जीव की देह परिवर्तन को रूप देते है शनि भक्तो के निमित विशेष आदर रखते है
परिवर्तन प्रक्रति का नियम है जो धरा पर सजग रूप से प्रकाशित है मृत्यु उसी परिवर्तन की एक कड़ी है
देह त्याग का दूसरा नाम मृत्यु है देह धारण व् देह त्याग मूलतः दुःख के कारन है पर योगिओ के लिए यह कठिन नहीं-सत्य धरी जीव भी इस पड़ाव को सहजता से पार कर पते है -भगवान् शनि देव के भक्त भी इस स्थिति से सहजता से पार हो जाते है
जीव जीवन में बहुत सी प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष वेदनाओ से ग्रसित रहता है जब वेदना जेर्नोद्वर को पार कर जाती है तो यम अपने कर्म को रूप देते है और जीव की वेदना के स्वरुप को बदल देते है यद्दपि वेदना जीअवं का अंग है तब पर भी सहन सीमा की कोई परिधि है
मृत्यु एक अन्धकार है जहा जाने से सभी डरते है पर जो स्वयं में प्रश्काश का साधन रखते है वह इस भय से मुक्त रहते है भगवान् शनि देव उस अद्रितिये प्रकाश के दाता है
--------
दया धर्म का मूल है
पाप मूल अभिमान
------------
------
पूजन भगवान् शनि देव
संकल्प
ध्यानं
आवाहन
आसन समर्पयामि
अध्य॑ समर्पयामि
अच्मनीये समर्पयामि
स्नानं समर्पयामि
वस्त्रं समर्पयामि
गंधं समर्पयामि
पुष्पं समर्पयामि
धूपं दीपं समर्पयामि
नवेध्यम समर्पयामि
ऋतू फलं समर्पयामि
पंचामृत समर्पयामि
केसरादी समर्पयामि
सुगन्धित द्रव्यम समर्पयामि
ताम्र मूलम समर्पयामि
नमस्कारं समर्पयामि